Sunday, February 27, 2011

नाराज़ हूँ

न अपनी तकदीर से नाराज़ हूँ,
न उस खुदा से नाराज़ हूँ,
खीच दी जिनसे खुद मेने अपने हथोंकी लकीरें
आज उस कलम कि सियाही से नाराज़ हूँ

न उसकी बेवफाई से नाराज़ हूँ
न उसके दिए हुए दर्द से नाराज़ हूँ
जो दर्द खुद मैंने अपने दामन से लगा लिए
आज वो दामन के दागदार होने से नाराज़ हूँ

चल तो दिया तू एक ही पल मी मुझसे कह कर अलविदा
न सोचा मेरी ज़िंदगी का अंजाम क्या होगा तेरे बिना
न तेरे जाने से न अपने अंजाम से नाराज़ हूँ
बस अपनी शिक़ायत न करने कि फितरत से नाराज़ हूँ

मोहब्बत मेरी कभी होगी नही पूरी ये पता था
ख्वाब देखे थे उसे पाने कि उसके किसी ग़ैर के होजाने के बाद भी
न उसके अधूरेपन से न उन हसीं ख्वाबों से नाराज़ हूँ
बस जो डिल ने किया साँसों से समझौता उसी समझौते से नाराज़ हूँ

मेरे काफिले को मंजिल न मिलना मुक़र्रर था
तेरा मुझसे बेरुखी करना था बरक़रार
न तेरी मंजिलों से न ही बेरुखियों से नाराज़ हूँ
जो बनायीं रास्तोंके खोने के बावजूद उस मंजिल से नाराज़ हूँ

यादें तेरी हर लम्हा अश्कों का तूफ़ान लिए आती है
तेरी आहात कि चाह से ही रूह मेरी तड़प सी जाती है
न उन यादों से न उन लम्हों से न उन अश्कों से नाराज़ हूँ
जिन्होंने समायी तेरी हर धड़कन उनमे उन धडकनों से नाराज़ हूँ

खुदा ने दिया हर मोड़ पर मुझे तेरी बेवफाई का इल्म
बसाए बैठे थे फिर भी ख्वाबोंका हसीं ताजमहल
न उस खुदा से न तेरी बेवफाई से न ही उन ख्वाबोंसे नाराज़ हूँ
अपना समझा था तुझे और सिर्फ तुझे ही जहाँ मी,
और तुने ही जार जार किया मेरी रूह को
इसलिए मैं आज खुद अपने आपसे ही नाराज़ हूँ...

Tuesday, February 8, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण

1. सादा जीवन , उच्च विचार : उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था . पुराने और मैले कपड़े , बढ़ी हुई दाढ़ी , महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन . जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो . जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो - आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं . और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने ! ' जो डर गया , सो मर गया ' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था .

२ . दयालु प्रवृत्ति : ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था . इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी . अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था . पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया .

3. नृत्य - संगीत का शौकीन : ' महबूबा ओये महबूबा ' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है . अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था . वह जीवन में नृत्य - संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था . बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था . उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था . गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था .

4. अनुशासनप्रिय नायक : जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती . अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी .

5. हास्य - रस का प्रेमी : उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था . कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था . ताकि वो हंसते - हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें . वह आधुनिक यु का ' लाफिंग बुद्धा ' था .

6. नारी के प्रति सम्मान : बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया . आज - कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता .

7. भिक्षुक जीवन : उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था . रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा - कच्चा अनाज मिलता था , वो उसी से अपनी गुजर - बसर करता था . सोना , चांदी , बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की .

8. सामाजिक कार्य : डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था . सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो ऍ

Wednesday, February 2, 2011

दोस्ती

दुनिया का हर रिश्ता हमारे जन्म से संबंधित होता है, जिसे बदल पाना आदमी के लिए मुमकिन नहीं होता है. जन्म के साथ मिले यह रिश्ते मानो या ना मानो हमेशा इंसान से जुड़े ही रहते है. परंतु इनके अलावा एक रिश्ता है जिससे इंसान खुद अपनी पसंद से जुड़ता है.वो रिश्ता है दोस्ती का रिश्ता , दो आदमी दोस्त तभी होते है जब वो एक दुसरे को पसंद करते है.