Thursday, December 1, 2011

!!! सच कभी किसी को चोट नहीं पहुचाता हैं और ना ही किसी का दिल दुखाता हैं !!!

सच कभी किसी को चोट नहीं पहुचाता हैं और ना ही किसी का दिल दुखाता हैं । सच को स्वीकारने कि ताकत सब में नहीं होती हैं . अगर हम कुछ कहते हैं तो उस पर अटल नहीं रहते हैं यानी हमारे विचार पूर्ण रूप से परिपक्व हो उस से पहले ही हम अपनी राय दे देते हैं और फिर जब कोई हमे आईना दिखता हैं तो हम बजाये अपनी गलती मानने के एक और व्यक्ति तलाशते हैं जिसके साथ मिल कर हम अपनी अपरिपक सोच को सही साबित कर के दूसरे के सच को झूठ साबित कर दे ।

इस संसार मे अगर आप किसी को भी "तुच्छ " कहते हैं तो समझ लीजिये ईश्वर कि बनाई कृति को आप नकार रहे हैं । तुच्छ जैसा तो कोई नहीं हैं ना होगा बस विचार और कर्म सबके अपने हैं ।

आप को यहाँ जितने भी अच्छे और सच्चे लगते हैं उन सब मे कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमजोरी हैं और वो कमजोरी उन सब को ही उनसब से जिन मे ये कमजोरी नहीं हैं तुच्छ बनाती हैं ।

Saturday, October 1, 2011

हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू

हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
हाथ से छु के इससे रिश्तों का इल्जाम न दो
सिर्फ़ एहसास है यह, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो
हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
हाथ से छु के इससे रिश्तों का इल्जाम न दो




हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है
यह बुझती है, न रूकती है, न ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है यह, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो

हमने देखि है
मुस्कराहट से खिली रहती है आंखों में कहीं
और पलकों पे उजाले से रुके रहते हैं
होंठ कुछ कहते नहीं, कांपते होंठों पे मगर
कइतने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं
सिर्फ़ एहसास है यह, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो
हमने देखि है उन आंखों की महकती खुशबू
हाथ से छु के इससे रिश्तों का इल्जाम न दो
हमने देखि है…

!!! गुलज़ार फिल्म ख़ामोशी !!!

Saturday, May 21, 2011

मेरा कुत्ता भी फेसबुक पर है

काम वाली बाई एक दिन अचानक काम पर नहीं आई तो पत्नी ने फोन पर डांट लगाईं अगर तुझे आज नहीं आना था तो पहले बताना था

वह बोली - मैंने तो परसों ही फेसबुक पर लिख दिया था क़ि एक सप्ताह के लिए गोवा जा रही हूँ पहले अपडेट रहो फिर भी पता न चले तो कहो

पत्नी बोली = तो तू फेसबुक पर भी है

उसने जवाब दिया - मै तो बहुत पहले से फेसबुक पर हूँ साहब मेरे फ्रेंड हैं! बिलकुल नहीं झिझकते हैं मेरे प्रत्येक अपडेट पर बिंदास कमेन्ट लिखते हैं मेरे इस अपडेट पर उन्होंने कमेन्ट लिखा हैप्पी जर्नी, टेक केयर, आई मिस यू, जल्दी आना मुझे नहीं भाएगा पत्नी के हाथ का खाना

इतना सुनते ही मुसीबत बढ़ गयी पत्नी ने फोन बंद किया और मेरी छाती पर चढ़ गयी गब्बर सिंह के अंदाज़ में बोली - तेरा क्या होगा रे कालिया !

मैंने कहा -देवी ! मैंने तेरे साथ फेरे खाए हैं

वह बोली - तो अब मेरे हाथ का खाना भी खा !

अचानक दोबारा फोन करके पत्नी ने काम वाली बाई से घबराये-घबराए पूछा, तेरे पास गोवा जाने के लिए पैसे कहाँ से आये ?

वह बोली- सक्सेना जी के साथ एलटीसी पर आई हूँ पिछले साल वर्माजी के साथ उनकी कामवाली बाई गयी थी तब मै नई-नई थी जब मैंने रोते हुए उन्हें अपनी जलन का कारण बताया तब उन्होंने ही समझाया क़ि वर्माजी की कामवाली बाई के भाग्य से बिलकुल नहीं जलना अगले साल दिसम्बर में मैडम जब मायके जायगी तब तू मेरे साथ चलना !

पहले लोग कैशबुक खोलते थे आजकल फेसबुक खोलते हैं हर कोई फेसबुक में बिजी है कैशबुक खोलने के लिए कमाना पड़ता है
इसलिए फेसबुक ईजी है आदमी कंप्यूटर के सामने बैठकर रात-रातभर जागता है बिंदास बातें करने के लिए पराई औरतों के पीछे भागता है लेकिन इस प्रकरण से मेरी समझ में यह बात आई है क़ि जिसे वह बिंदास मॉडल समझ रहा है वह तो किसी की कामवाली बाई है जिसने कन्फ्यूज़ करने के लिए किसी जवान सुन्दर लड़की की फोटो लगाईं है

सारा का सारा मामला लुक पर है और अब तो मेरा कुत्ता भी फेसबुक पर है

Wednesday, April 6, 2011

दरबारे वतन में



दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे

ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे

अब टूट गिरेंगी जंजीरें अब ज़िन्दानों की ख़ैर नहीं
जो दरया झूम के उठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे

कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे

ऐ ज़ुल्म के मातों लब खोलो चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे

Wednesday, March 16, 2011

अब तुम कहो...

जब दिल चाहता कुछ औऱ है पर करना पड़ता कुछ औऱ है...
अब हम नहीं रहे तुम्हारे, पर तुम अब भी हो हमारे,
तुमने कहा हमसे भुला दें तुम्हें लो अब हमने भुला दिया तुम्हें
पर ये तो बता दो हमें हमने तो कुछ कहा नहीं तुमसे
अब तुम कहो क्या हमें भुला दिया तुमने?

तुम कहते हो भूल जाऊं तुम्हें पर तुम चाहते नहीं मैं भूला दूं तुम्हें
तुम कहते दूर हो जाऊं तुझसे पर तुम चाहते नहीं दूर हो जाऊं तुमसे
न जाने ये कैसी कसमकश है
जब दिल चाहता कुछ औऱ है पर करना पड़ता कुछ औऱ है...

Sunday, February 27, 2011

नाराज़ हूँ

न अपनी तकदीर से नाराज़ हूँ,
न उस खुदा से नाराज़ हूँ,
खीच दी जिनसे खुद मेने अपने हथोंकी लकीरें
आज उस कलम कि सियाही से नाराज़ हूँ

न उसकी बेवफाई से नाराज़ हूँ
न उसके दिए हुए दर्द से नाराज़ हूँ
जो दर्द खुद मैंने अपने दामन से लगा लिए
आज वो दामन के दागदार होने से नाराज़ हूँ

चल तो दिया तू एक ही पल मी मुझसे कह कर अलविदा
न सोचा मेरी ज़िंदगी का अंजाम क्या होगा तेरे बिना
न तेरे जाने से न अपने अंजाम से नाराज़ हूँ
बस अपनी शिक़ायत न करने कि फितरत से नाराज़ हूँ

मोहब्बत मेरी कभी होगी नही पूरी ये पता था
ख्वाब देखे थे उसे पाने कि उसके किसी ग़ैर के होजाने के बाद भी
न उसके अधूरेपन से न उन हसीं ख्वाबों से नाराज़ हूँ
बस जो डिल ने किया साँसों से समझौता उसी समझौते से नाराज़ हूँ

मेरे काफिले को मंजिल न मिलना मुक़र्रर था
तेरा मुझसे बेरुखी करना था बरक़रार
न तेरी मंजिलों से न ही बेरुखियों से नाराज़ हूँ
जो बनायीं रास्तोंके खोने के बावजूद उस मंजिल से नाराज़ हूँ

यादें तेरी हर लम्हा अश्कों का तूफ़ान लिए आती है
तेरी आहात कि चाह से ही रूह मेरी तड़प सी जाती है
न उन यादों से न उन लम्हों से न उन अश्कों से नाराज़ हूँ
जिन्होंने समायी तेरी हर धड़कन उनमे उन धडकनों से नाराज़ हूँ

खुदा ने दिया हर मोड़ पर मुझे तेरी बेवफाई का इल्म
बसाए बैठे थे फिर भी ख्वाबोंका हसीं ताजमहल
न उस खुदा से न तेरी बेवफाई से न ही उन ख्वाबोंसे नाराज़ हूँ
अपना समझा था तुझे और सिर्फ तुझे ही जहाँ मी,
और तुने ही जार जार किया मेरी रूह को
इसलिए मैं आज खुद अपने आपसे ही नाराज़ हूँ...

Tuesday, February 8, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण

1. सादा जीवन , उच्च विचार : उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था . पुराने और मैले कपड़े , बढ़ी हुई दाढ़ी , महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन . जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो . जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो - आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं . और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने ! ' जो डर गया , सो मर गया ' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था .

२ . दयालु प्रवृत्ति : ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था . इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी . अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था . पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया .

3. नृत्य - संगीत का शौकीन : ' महबूबा ओये महबूबा ' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है . अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था . वह जीवन में नृत्य - संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था . बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था . उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था . गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था .

4. अनुशासनप्रिय नायक : जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती . अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी .

5. हास्य - रस का प्रेमी : उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था . कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था . ताकि वो हंसते - हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें . वह आधुनिक यु का ' लाफिंग बुद्धा ' था .

6. नारी के प्रति सम्मान : बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया . आज - कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता .

7. भिक्षुक जीवन : उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था . रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा - कच्चा अनाज मिलता था , वो उसी से अपनी गुजर - बसर करता था . सोना , चांदी , बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की .

8. सामाजिक कार्य : डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था . सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो ऍ

Wednesday, February 2, 2011

दोस्ती

दुनिया का हर रिश्ता हमारे जन्म से संबंधित होता है, जिसे बदल पाना आदमी के लिए मुमकिन नहीं होता है. जन्म के साथ मिले यह रिश्ते मानो या ना मानो हमेशा इंसान से जुड़े ही रहते है. परंतु इनके अलावा एक रिश्ता है जिससे इंसान खुद अपनी पसंद से जुड़ता है.वो रिश्ता है दोस्ती का रिश्ता , दो आदमी दोस्त तभी होते है जब वो एक दुसरे को पसंद करते है.

Thursday, January 27, 2011

गालियां

गालियों के खुले इस्तेमाल का चलन इन दिनों लगातार बढ़ रहा है उससे लगता है कि गाली दिए बिना न तो विद्रोह को सार्थक स्वर दिया जा सकता है, न ही प्रेम को. पुरुषों ही नहीं, बिंदास जीवन जीने वाली युवतियों की बातचीत में भी गालियों का चलन है

गालियां बताती हैं कि आप के भीतर अपने खयालात को तर्क के बूते स्थापित कर पाने की क्षमता नहीं है.