Tuesday, May 28, 2013

जब मैं छोटा था

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से “स्कूल” तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,

अब वहां “मोबाइल शॉप”, “विडियो पार्लर” हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है…
 
जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी “साइकिल रेस”,
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..


जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,

पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी “ट्रेफिक सिग्नल” पे मिलते हैं “हाई” करते
हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,

होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..


जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है.


जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है.
“मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते “

जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो न की काटो


Monday, May 27, 2013

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।

उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।

छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।

उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।

वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।

रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।

तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।

हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।

मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।

मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।

दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।

सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना

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Sunday, May 12, 2013

मैँ "माँ" हु.... (मातृ दिवस)

जिस लडके को नौ महीने पेट मेँ रखा वो,
 

शादी के बाद
 

नौ महीने बाद बहु को लेकर अलग हो गया, मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ" हु.
उसका नौँवे दिन फोन आया, पुत्रवधु को अच्छी जोब मिली है. 

मैँने पुछा तूम्हारा खाना ?
उसने कहा " टिफिन मँगवाते है,
मैँ सहम गई मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ" हु.
नवरात्री मेँ लडके का फोन आया पुत्रवधु प्रगनेन्ट है आप देखभाल करोगी ना ?
मैने हा कही.


मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ" हु.
पुत्रवधु ने पुत्र जन्मा , प्रपोत्र का चेहरा देख कर मैँ रो पडी,
पुत्र ने पुछा माँ यह खुशी के आँसु है ?

मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ" हु.
 

बेटे ने पुछा , माँ तुम तुम्हारे घर हमारे बेटे
का बेबी सिटिँग करोगी ना ?
मैँ यह सुनकर हँसी. मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ" हु.
बाद मेँ....


प्रपोत्र ने एक दिन पुछा "
दादी जी दादी जी आप हम सेँ अलग क्यु हो ?
यह सुनकर मैँ रो पडी लेकिन हा
मैँ चुप रही: कुछ नही बोली क्योँकिँ मैँ "माँ" हु..-