Sunday, November 14, 2010

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया...

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया

कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया

सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया

कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया


-बशीर बद्र

5 comments:

  1. truly brilliant..
    keep writing...............all the best

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  2. बहुत खूब्।
    बाल दिवस की शुभकामनायें.
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
    लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

    तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
    आईना बात करने पे मज़बूर हो गया

    बहुत खूबसूरत गज़ल ..

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  4. अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
    जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया

    ....

    It's truly sad but unfortunately it happens !

    When we extend our pure love to someone, they get offended for no reason.

    .

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