पहुँच किनारे भूल गए सब कैसी कश्ती मांझी कौन
तुमने चुप्पी साध ली है तो मैं भी अब हो चला हूँ मौन
वक्त फैसला देगा इस खामोशी का अपराधी कौन
अंधेरो में तो कोई ना कोई दीया जलाना ही पड़ता है
रात कटी भोर हुई ,तो दीये की परवाह करता कौन
जब तक है मझधार में कश्ती मांझी की जरूरत रहती है
पहुँच किनारे भूल गए सब कैसी कश्ती मांझी कौन
दुनिया का दस्तूर है शायद हम को ही मालूम नही
फायदा नही तो कैसा रिश्ता तू कौन और मैं हूँ कौन
माप दंड उपयोगिता है रिश्ता किस से कितना रखना है
बूढ़े बैल को जोत के अपने खेत में हल चलवाता कौन