Tuesday, February 14, 2017

पहुँच किनारे भूल गए सब कैसी कश्ती मांझी कौन

पहुँच किनारे भूल गए सब कैसी कश्ती मांझी कौन



तुमने  चुप्पी साध  ली  है तो मैं  भी अब हो चला  हूँ मौन

वक्त फैसला देगा इस खामोशी का अपराधी कौन


अंधेरो में तो कोई ना कोई दीया  जलाना ही पड़ता है

रात कटी  भोर हुई ,तो दीये  की परवाह करता कौन


जब तक है मझधार में कश्ती मांझी की जरूरत रहती है

पहुँच किनारे भूल गए सब कैसी कश्ती मांझी कौन


दुनिया का दस्तूर है  शायद हम को ही मालूम नही

फायदा नही तो कैसा  रिश्ता  तू  कौन और मैं हूँ कौन


माप दंड उपयोगिता  है  रिश्ता  किस से कितना रखना है

बूढ़े बैल को जोत के अपने खेत में हल चलवाता कौन 


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