गर्मियों का एक सुहावना सा दिन था। हल्के से बादल घुमड़ आए थे। नीलिमा जल्दी ही घर से निकल आयी, शाम की वॉक का मज़ा उठाने के लिये। उनकी कॉलोनी के पार्क में लाफ्टर क्लब के लोग जमा थे। ठहाकों का सैशन चल रहा था। उसके बाद एक महिला टच थैरेपी पर कुछ बोलने लगी। नीलिमा का ध्यान तेज़ तेज़ वॉक करते हुए एक आखिरी बात पर अटक गया कि हम बच्चों से सम्मान की अपेक्षा रखते हैं, प्रेम सिखाने की बात करते हैं, उनकी गलतियां निकालते हैं, कोई मुझे यह बताएगा कि आज सुबह से आपने कितनी बार अपने बच्चे को गले से लगाया?
नीलिमा के मन में यह बात गूंजती रही और वह सुबह से अब तक के दिन के हिसाब में लग गई, उसे याद आया सुबह सुबह उसका किचन में पराग के कान उमेठना, `` तुम रात को भी दांत साफ किये बिना सो गये थे अब सुबह भी... !'' उसने सोचा कि `` मैं भूल गई थी उसे सुबह का आलिंगन देना, जबकि मुझे पता था पिछले होमवर्क के बोझ से वह इतना थक गया था कि मैं ने ही कहा था `` चलो सो जाओ।'' हालांकि वह पिछला होमवर्क उसके बच्चों को लेकर मायके चली गई थी और उनका स्कूल मिस हुआ था।
नीलिमा को अपनी ही तीखी आवाज़ें चुभने लगीं, `` सलोनी, अब तुम दसवीं में आ गयी हो, अपना लंचबॉक्स तुम खुद पैक कर सकती हो न। हम दसवीं में पूरे घर का खाना बनाते थे। आलसी होती जा रही हो।'' या फिर नीलिमा की शिकायत रहती है कि सलोनी कभी उसे बता कर नहीं जाती... कि कहां जा रही है। हमेशा जवाब मिलता है ``मोबाइल है ना चैक कर लेना कहा हूँ।''
यहां भी नीलिमा भूल रही थी कि सलोनी ने बाहर के बहत से काम बखूबी संभाल रखे हैं - फोन बिल्स जमा करना, बैंक का काम, सब्ज़ी भी ले आती है... उस पर चार मुख्य विषयों की ट्यूशन अलग करती है। उसकी बेटी आलसी तो ज़रा भी नहीं है। और गैरज़िम्मेदार या विवेकहीन भी नहीं।
उसने पिछले कई दिनों की जांच की। अरसा हो गया था वह न बच्चों के साथ खेली थी, न उनके साथ रूटीन बातों के अलावा उनकी निजी समस्याआें को लेकर खुलकर बात की
बच्चे जब से थोड़े बड़े हुए हैं, और उसने अपना बुटीक खोला है, बच्चों को कभी गले से लगाया ही नहीं। जबकि इस प्रेम की छोटी सी हरकत में मुश्किल से २० सैकण्ड लगते हैं।
यह समस्या केवल नीलिमा की नहीं हम सभी की है। हम अपनी व्यस्तताआें के घेरे को सचमुच के घेरे से कुछ ज़्यादा बड़ा खींच कर देखते हैं और प्रेम जताने के छोटे छोटे तरीकों को भूलते जा रहे हैं। नीलिमा खुद को याद है... उसे उसके पिता ने हमेशा गले लगाकर जगाया, मां ने स्कूल जाते समय हमेशा चूमा। आज भी पिता मिलते हैं तो गले लगाते हैं उसे ही नहीं, उसके पति को, बच्चों को भी। यह कभी हमारे जीने के तौर तरीकों में शामिल था। आगमन पर गले लगाना, विदा पर भी।
हम अपने बच्चों की गलतियां तो बहत जल्दी निकालने लगे हैं, उनकी तारीफ कम करने लगे हैं। हमने अपनी अपेक्षाएं पढ़ाई, कंप्यूटर, डांस, पब्लिक स्पीकींग सबमें इतनी बढ़ा ली हैं कि हमें कम में संतोष नहीं होता। उस पर हम सहज स्नेह की छोटी छोटी अभिव्यक्तियों से बचने लगे हैं। क्योंकि व्यस्त रहते हैं। एक आलिंगन के लिये व्यस्त? आलिंगन का अर्थ केवल गले लगाना ही नहीं है। बच्चों के लिये उनकी मनपसंद डिश बनाना भी एक तरह से प्रेम की अभिव्यक्ति है। बच्चों के साथ खेलना, उनकी छोटी समस्या का हल निकालना भी एक प्रेम प्रदर्शन है। उनके बालों पर हाथ फिरा देना, हाथ थाम लेना, हाथ दबा देना, माथा चूम लेना जैसे छोटे प्रेम प्रदर्शन भी एक आलिंगन का काम करते हैं।
आईए आज से इसे एक माता या पिता के तौर पर आदत बना लें। कई लोग तो यह नहीं जानते कि अपना प्रेम बच्चों के प्रति कैसे अभिव्यक्त करें। अगर आप अपने बच्चों से प्रेम करते हैं तो इतना तो करें कि प्रेम की समस्त ऊर्जा बच्चे तक पहुंचे। एक आलिंगन... पेम से भरा। क्यों छोटे बच्चों को रोने से चुप कराने के लिये सीने से लगाया जाता है? बच्चे उस प्रेम को समझ कर शान्त होकर सो जाते हैं। बच्चे अगर बड़े हो गये तो क्या उनकी यह ज़रूरत समाप्त हो गई... नहीं वे आज भी ऐसा चाहेंगे...केवल अच्छे पलों में नहीं... केवल फर्स्ट आने पर नहीं ...अपने कठिन पलों में भी ... बिगड़े हुए मूड में, स्कूल से डांट खाकर आने पर, गणित में कम नम्बर लाने पर।
कई भारतीय परिवारों में प्रेम के प्रदर्शन को गैरपारंपरिक व व्यर्थ माना जाता है। खासतौर से पिता ऐसे प्रेम के दिखावों से बचते हैं और बड़े होते बेटे को `गले लगाना' करना बंद कर देते हैं। उन्हें लगता है कि इससे बच्चा बिगड़ जायेगा या कि अब कोई उम्र है? अगर स्पर्शों की भाषा को हम बड़े नहीं भूले और प्रेम के दौरान इस भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो बच्चों के साथ हमने यह भाषा सीमित क्यों कर दी है?
अपने व्यक्तित्व के विकास की ओर अग्रसर बच्चों को इस भाषा की ज़रूरत है... आपका बच्चा स्टेज पर परफॉर्म करने जा रहा है। उसे आपके प्रेम की ज़रूरत है। परीक्षा देने जा रहा है, उसे गले से लगा कर गुडलक कहें। नयी खूबसूरत ड्रेस पहनी है आपकी बिटिया ने उसका माथा चूम लें। शब्दों की आवश्यकता ही नहीं।
अकसर देखा गया है कि घर में प्रेम पाने वाले बच्चे जब घर से बाहर निकलते हैं पे्रम से छलछलाते हुए, इस आत्मविश्वास से भरे हुए कि वे दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हैं तो वे बाहर की झूठी प्रशंसा व प्रेम के मोहताज नहीं रहते और उनका विवेक उनकी उंगली थामे रहता है।
नीलिमा की दुनिया लाफ्टर क्लब की उस टच थैरेपी वाली महिला ने बदल दी। सलोनी हमेशा अब कहीं जाने से पहले मम्मी से गले लग कर जाती है और बातों बातों में बता देती है - आज आठ से बारह क्लास है, फिर मां बीच में आपकी साड़ी बुटीक से कलेक्ट कर लाऊंगी। उसके बाद दो ट्यूशन, फिर एक फ्रेण्ड की बर्थडे ट्रीट है, मॉम आते हुए सात बजेंगे। मोबाइल पर बात करती रहना।
पराग आजकल स्कूल से आते ही उससे लिपटता है, स्कूल की तमाम बातें बताता है। ये नहीं कि बैग फेंका और सीधे कंप्यूटर पर लगे गेम खेलने।
नीलिमा के पति सोम ने भी अपनी व्यस्तता में से वक्त निकाल कर बच्चों को दो पल प्रेम प्रदर्शन के देना सीख लिया है। वे घनी व्यस्तता में से समय निकाल कर सलोनी का मोबाइल मिलाते हैं, पूछते हैं -`` हां तो मेरा बेटा, आज कहां व्यस्त है? शाम को जल्दी आ सको तो हम साथ एक अच्छी फिल्म देखें।''
`` यस डैडी, मैं जल्दी पहुंचती हूँ।''
या सोम पराग केा स्पोर्ट्स मैगज़ीन में से क्रिकेटर्स के पिक्चर्स काट कर उसकी स्पोर्टस फाईल के लिये देते हैं।
बच्चों में बदलाव स्वाभाविक ही है। वे प्रेम पाएंगे वहीं खिंचे चले आएंगे और बंधे रहेंगे।
के . सुधा
No comments:
Post a Comment