नवरात्री के नौ दिन के उपवास का क्या औचित्य है. जब अधिकांश लोग(भक्त) नौ दि्न के उपवास के बाद फिर से भाव शून्य होकर अपने कार्य में लग जाते है. लोगो की धारणा रहती है. कि अगर हर साल की तरह इस साल भी उपवास नही रखा तो शायद कुछ अनिष्ट हो जायेगा. और लोग तो केवल टाईमपास करने के लिये रहते है तो कुछ भक्त दुसरो की देखा देखी , बराबरी करने के लिये रहते है. मेरे मोहल्ले में इस वर्ष भी महिलाओ के बीच नवरात्री का उपवास रहने के लिये कुछ इसी तरह का माहौल मैने देखा. लोगो में मा दुर्गा के प्रति भक्त कम और शो-बाजी ज्यादा दिखाई पड़ा, कौन रामनवमी के दिन सबसे पहले नौ कन्याओ को भोजन कराकर पुण्य कमाएगा, कौन सबसे बड़ा भक्त बनेगा. और अपने ग्रुप में रौब जमायेगा. यहा बता दू की मै बहुत बड़ा भगवान भक्त नही हू. लेकिन इस तरह की दिखावे ने मुझे व्यथित किया. नवरात्र के दिन मै जब अपने घर समोसे,कचौरियाव जलेबी ले जा रहा था. तभी मौहल्ले की एक महिला ने मुझसे पूछा की मै क्या ले जा रहा हू ? उसने जब समोसा,जलेबी और कचौरिया देखी तो मन मसोस कर और अफसोस भरे लहसे से कहा कि छी मै उपवास हू इसलिये नही खा सकती, यह सूनकर मैने सोचा की कुछ लोगो की भक्ति साधारण भौतिक वस्तुओ से विचलित हो जाती है. हमारे मौहल्ले की अधिकतर सास अपने बहुओ की चुगली , और अधिकांश बहुये अपने सास की बदनामी मे जुटी रहती है. तो इनके नौ दिन उपवास रहकर नौ कन्याओ को भोजन कराना कौन सा पुण्य देगा.
(मेरा औचित्य किसी को ठेस पहुचाने का नही हौ. मैने जो महसूस किया उसे ही कहा है.)
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