सच कभी किसी को चोट नहीं पहुचाता हैं और ना ही किसी का दिल दुखाता हैं । सच को स्वीकारने कि ताकत सब में नहीं होती हैं . अगर हम कुछ कहते हैं तो उस पर अटल नहीं रहते हैं यानी हमारे विचार पूर्ण रूप से परिपक्व हो उस से पहले ही हम अपनी राय दे देते हैं और फिर जब कोई हमे आईना दिखता हैं तो हम बजाये अपनी गलती मानने के एक और व्यक्ति तलाशते हैं जिसके साथ मिल कर हम अपनी अपरिपक सोच को सही साबित कर के दूसरे के सच को झूठ साबित कर दे ।
इस संसार मे अगर आप किसी को भी "तुच्छ " कहते हैं तो समझ लीजिये ईश्वर कि बनाई कृति को आप नकार रहे हैं । तुच्छ जैसा तो कोई नहीं हैं ना होगा बस विचार और कर्म सबके अपने हैं ।
आप को यहाँ जितने भी अच्छे और सच्चे लगते हैं उन सब मे कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमजोरी हैं और वो कमजोरी उन सब को ही उनसब से जिन मे ये कमजोरी नहीं हैं तुच्छ बनाती हैं ।
सच बोलना जितना मुश्किल है, सच को स्वीकारना उस से भी ज्यादा मुश्किल है. लेकिन सच ही शाश्वत है और रहेगा मुझे अपने सच पर उतना ही अभिमान है जितना किसी को अपने झूठ से होने वाले फायदे पर होता हैं - Sourav
ReplyDeleteहम बजाये अपनी गलती मानने के एक और व्यक्ति तलाशते हैं जिसके साथ मिल कर हम अपनी अपरिपक सोच को सही साबित कर के दूसरे के सच को झूठ साबित कर दे। like it....
ReplyDeletevery true
ReplyDelete