Saturday, July 28, 2012

माना वक़्त नहीं और बाकी कई काम सही

माना वक़्त नहीं और बाकी कई काम सही
राह भी हैं लम्बी और ढलती ये शाम सही
अंजाम से पहले खुद को ना नकारुंगा
वादा हैं मेरा कि मैं नहीं हारूँगा

जीत के बनेंगी पायदान चट्टानें मुश्किलों की
हिम्मतो से बदलूँगा लकीरे इन हथेलियों की
कि हस्ती अब अपनी हर कीमत सवारूँगा
वादा हैं मेरा कि मैं नहीं हारूँगा

चाहए कितनी ही स्याह मायूसी नजर आती हो
हौसलों कि चांदनी चाहे मद्धम हुई जाती हो
कर मजबूत खुद को वक़्त-ऐ-मुफलिसी गुजारूँगा
वादा हैं मेरा कि मैं नहीं हारूँगा

आफताब नहीं तो क्या ऑंखें उम्मीद से रोशन हैं
ज़माने को नहीं तो क्या मुझे भरोसा हरदम हैं
पाउँगा मंजिल ख्वाबो की चाँद जमी उतारूंगा
वादा हैं मेरा कि मैं नहीं हारूँगा

No comments:

Post a Comment