Friday, July 27, 2018

धर्म के राक्षसों की लपलपाती जीभ का कल्याण हो या नाश?

''अतापि और वतापि दो दैत्य थे. अतापि किसी भी राहगीर को बड़े प्रेम से अपने घर बुलाता, 'आप आइए मेरे घर. शायद आपको भूख लगी है. मैं स्वादिष्ट भोजन ग्रहण कराऊंगा.'
राहगीर ख़ुशी-ख़ुशी आ जाते और इतने में इधर वतापि अपनी मायावी, राक्षसी शक्तियों का प्रयोग करके बकरे का रूप धारण कर लेता. अतिथि उस स्वादिष्ट बकरे का भोजन करके प्रसन्नचित हो जाते. और इतने में अतापि आवाज़ लगाता- वतापि, वतापि बाहर आओ.
और अचानक अतिथि का पेट फटता और एक मांस का लोथड़ा बाहर आ जाता और राहगीर परलोक. फिर दोनों भाई खुशी के मारे नाच उठते, झूम उठते. धर्मों का रूप यही है. राहगीर को प्रेम से घर बुलाओ. आदर समेत भोजन ग्रहण कराओ. फिर उसकी आत्मा पर कब्ज़ा कर लो.
यहूदी, मुसलमान. ईसाई मुसलमान.हिंदू मुसलमान. सब अतापि वतापि हैं.''

~'सेक्रेड गेम्स' 

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