वह भी दिन थे
घर में जब-जब चिट्ठी कोई आती
अनपढ़ दादी मनोहरी कर पोता से पढ़वाती
अपने नाम नमस्ते पढ़कर काका खुश हो जाते
वंदन चरण का पढ़कर ताई फूली नहीं समाती
अपनी नहीं मिले तो चिट्ठी औरों की ही ला दो
मुझे वह चिट्ठी लौटा दो
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